Tuesday 6 March 2012

टूटी नींद... टूटे सपने...




आज फिर आँख खुल गयी आधी रात में...
खिड़की  से  झाँक  रही थी  चांदनी ...
ना  जाने  किसकी  तलाश  में ...
शायद  वो  चाह  रही  थी  बीते  हुए  कल  पे  कुछ  रौशनी  लाना ...

नींद  आज  फिर  गुम  थी  आँखों  से ...
फिर  ख़्वाब  नहीं  थे  कही  भी ...
सब  टूटा  हुआ  नज़र  आ  रहा  है  आस  पास ...
कुछ  सूझ  नहीं  रहा  है  अब  मुझे ...

सोच  का  कभी  कोई  दायरा  नहीं  था ...
ना  ही  आज  कोई  दायरा  बना  पायी  मैं ...
फिर  परों  का  सहारा  लिए  उढ  चली  वो  जाने  कहाँ ...
शायद  वहां ... जहाँ  सोचा  न  था ...

बचपन  में  सब  कितना  अच्छा  लगता  था ...
पापा  का  प्यार  माँ  का  लाढ़ ...
दोस्तों  की  टोली , मंदिर  की  रोली ...
दुर्गा  का  खाना  और  शैतानी  की सवारी ...

मेले  में  जाना  झूले  झूल कर  आना ...
स्कूल  में  होमेवोर्क  नहीं  करके  ले  जाना ...
घर  पर  आकर  झूठ  बोलना  बहाने  बनाना ...
पापा  का  गुस्साना  और  फिर  भी  माँ  का  बचाना ...

बेहेन का  तोतली  सी  आवाज़  में  दीदी  बुलाना ...
उसको  अपनी  साइकिल  पे  घुमाना ...
विनय  नगर  की  गलियों  से  किले  तक  ले  जाना ...
शाम  को  मच्चार्तानी  में  कहानी  सुनाना ...

सोचा  ही  नहीं  की  कभी  वक़्त  भी  बदल  जायेगा ...
जिन्गदी  के  पन्नो  पे  स्कूल  की  जगह  कॉलेज  का  नाम  आएगा ...
कॉलेज  का  भी  अपना  ही  दौर  था ...
बड़ों  की  एक जगह  पर  बच्चो  का  शोर  था ...

सभी  लडकियां  सज  धज  कर आती  थी ...
पर  अपनी  टोली  तब  भी  बेतरतीबी  में  रंग  जमाती  थी ...
टीचर की  हर  बात  को  घुमा  कर  बोलना ...
और  फिर  हस्ते  हस्ते  सबके  सेन्स ऑफ़  ह्यूमर  को  तोलना ...

कौन  है  आजू  बाजू  कभी  सोचा  नहीं ...
घर  पे  ना  दिया  वक़्त  कभी ,चिल्ला  कर  कभी  कोई  रोका  नहीं ...
हमें  कभी  कोई  खबर  न  थी  मस्ती  में  हमारी ...
पर  धीरे  धीरे  बढ़  रही  थी  वक़्त  की  सवारी ...

धीरे  से  एम् बी ऐ   की  कोअचिंग  में  बंधा  समां ...
उफ़  ये  क्या  याद  कर  बैठी  मैं ...
ऎसी  कोई  अच्छी  भी  कहाँ  थी  ये  यादें ...
तीन  दोस्तों  का  मिलना  और  फिर ...

अच्छा  ही  था  मैं  अलग  हो  गयी  थी ...
आज  भी  कहाँ  छोड़ते  हैं  वो  काले  साए  मुझे ...
ज़िन्दगी  की  एक  कडवी  सच्चाई  जो  देखी  थी ...
दोस्त  की  शकल  में  एक  काली  परछाई  देखी  थी ...

आ  पहुची  मैं  पुणे ...
एम् बी ऐ के कॉलेज  में ,ज़िन्दगी  कितनी  बदल  गयी  है  यहाँ ..
अब  हमें  पढना  पड़ता  है ...
पर  कब  तक , ऑरकुट  भी  एक  सखा  अपना  है  यहाँ ...

जॉब  में  आके  ज़िन्दगी  मानो  बदल  सी  गयी ...
दोस्त  कुछ  बने  कुछ  फिर  मिली  काली  पर्चैयाँ ...
पर  कुछ  दोस्त  होते  हैं  अपने ...
साथ  नहीं  छोड़ते  चाहे  कितनी  भी  हो  रुस्वाइयाँ ...

दोस्त  मेरा  भी  कोई  बना ...
पता  नहीं  चला  कब  वक़्त  बदल  गया ...
सोच  बदल  रही  थी  समझ  बदल  रही  थी ...
दिशाए  बदल  रही  थी  वादे  बदल  रहे  थे ...

कैसे  हुआ  ये  समझ  नहीं  आ  रहा  मुझे ...
सही  हुआ  या  गलत  हुआ  नहीं  पता  मुझे ...
पर  आज  एक  ऐसे  दोराहे  पे  खड़ी  हु ...
ना जानू जिंदा  हु  या  जिंदा  लाश  सी  पड़ी  हु ...

सब  कुछ  बदला  सा  लग  रहा  है  अब  मुझे ...
क्या  हो  रहा  है  ये  ज़िन्दगी  को  और  कुछ  न  सूझे ...
क्या  बदल  गए  वो  रिश्ते  जिनके  साथ  लगता  था  कभी ...
कुछ  भी  हो  नहीं  बदलेंगे  ये  चाहे  साथ  छोड़े सभी ...

माँ  पापा  के  उस  प्यार  को  मैं  झुठला  नहीं  सकती ...
पर  मैं  भी  बड़ी  हो  गयी  हु  क्यों  ये  मैं  बतला  नहीं  सकती ...
चाहे  बहुत  कुछ  यहाँ  बुरा  हो  रहा  है ...
पर  फिर  भी  दुनिया  में  कुछ  नया  हो  रहा  है ...


आज  क्या  करू  मैं  कुछ  समझ  नहीं  पा  रही  हु ...
ख़ुशी  कहाँ  गयी  ज़िन्दगी  से , सिर्फ  गुम  में  गोते  खा  रही  हूँ  ...
मेरे  कारण  ना  जाने  कितनी  जिंदगियां  बन  बिगड़  जायेंगी ...
येही  सोच  कर   मैं  जड्ड हुई  जा  रही  हूँ  ...

ऐसा  नहीं  था की  नहीं  सोचा  था  मैंने  कभी  इसके  बारे  में ...
पर  अंत इतना  दर्द भरा होगा  जाना  नहीं  था  मैंने ...
मेरे  कारण  कितनो  की  नींद  है  बाकी  हिसाब  लगा  रही  हूँ ...
क्यों  कभी  ये  सपने  ही  बुने  थे  सोचे  जा  रही  हूँ  ...


इन  आंसुओ  का  मोल  कैसे  बता  पाऊँगी  मैं ...
जो  हर  किसी  को  दिए  जा  रही  हूँ   मैं ...
पापा  की  उस  आवाज़  का  और  माँ  ki सिसकियों  का  हिसाब  किसे  दे  पाऊँगी  मैं ...
तुम्हारी  तो  कोई  गलती  भी  नहीं  थी , बस एक  गलत  लड़की  से  दिल  लगा  बैठे ...

ये  कराहने  की  आवाज़  कैसी  ओह्ह !!  माँ  आज  भी  नहीं  सोई ...
यहाँ  मैं  नहीं  सोई  वहां  पापा  और  तुम  भी  नहीं  सोये  होगे ...
और  ये  चांदनी  अभी  भी  आ  रही  है  खिड़की  से  अन्दर ...
ना  जाने  और  कितना  सोचना  बाकी  है  की  ख़तम  ही  नहीं  होता ................

19 comments:

  1. je hui naa baat !! :)

    ab jyada umda c feelings aa rhi hai pad k !! :)

    last para is nice !! :))

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    1. :) Thankx to u...

      KAHA THA NA... SOOKHE SOOKHE COOMNTS AAYENGE AGAIn... :(

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  2. Wo.. Mere agale Movie mein Gulzaar ke jagah pe tujhe Lyrist ka kaam pakka.. Bass Ye Itane Great Relevancy waale Pics kaha se dhoondh ke laati hai ye bhi bata de.. To Digital Mixing aur Photography ka bhi contract pakka..

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    1. Ha Ha haa... beta publically uda raha hai naa... mil mujhe next !! :)

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  3. ये कराहने की आवाज़ कैसी ओह्ह !! माँ आज भी नहीं सोई ...
    यहाँ मैं नहीं सोई वहां पापा और तुम भी नहीं सोये होगे ...
    और ये चांदनी अभी भी आ रही है खिड़की से अन्दर ...
    ना जाने और कितना सोचना बाकी है की ख़तम ही नहीं होता ...............

    nice lines :))))

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  4. सोच का कभी कोई दायरा नहीं था ...
    ना ही आज कोई दायरा बना पायी मैं ...
    फिर परों का सहारा लिए उढ चली वो जाने कहाँ ...
    शायद वहां ... जहाँ सोचा न था ..

    simply awesome !! ahaa :))

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    1. COPY PASTE KAISE KIYA :-|

      BTW Thankx :)

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  5. It's nice Kops..............line are really gud infact awesum.......but lil depressed.....I aspect sumthng Motivating, Wid Full of Life...... aggressive nd Hard Rock.......

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    1. bahot khub likha hai dost.... :) again nice.........(Kuch hindi wors samaz me nahi aaye :( :-p rest is nicely written)
      i agreed wid Ritesh's comment....
      waitng 4 next.............
      ALL THE VERY BEST :))))

      - ATUL CHAVAN (Naam to suna hi hoga B-) ;))

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    2. Thankxxx !!! :)
      yess v soon :)

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  6. haae kop ... bahut achha hai re...
    tu itna achha likhti hai.....
    puri jindgi samet di apni...

    GR8 :) :) :)

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  7. इन आंसुओ का मोल कैसे बता पाऊँगी मैं ...
    जो हर किसी को दिए जा रही हूँ मैं ...
    पापा की उस आवाज़ का और माँ ki सिसकियों का हिसाब किसे दे पाऊँगी मैं ...
    तुम्हारी तो कोई गलती भी नहीं थी , बस एक गलत लड़की से दिल लगा बैठे ...

    Nicely written wid deep thinking... :):):)
    Yes ur imaginations are bound less..

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  8. ahhhhhhhhhhhh.... by god itna deeply ghuss ke sochti ho.... socha to pitaji karte the..

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  9. Loved the details. And loved the boldness to admit things. Keep writing!

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    1. Thankx Aadi... U hav been an amazing teacher for me... teacher for expressions !! :)

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Thank You For Posting Your Views... Suggestions welcome :)