सुना है आज रंग्पच्मी है ...
मेरी ज़िन्दगी में क्यों रंगों की कमीं है ...
क्यूँ नहीं कोई ख़ुशी कोई उमंग है ...
क्यूँ नहीं कहीं पिचकारी कहीं पे भंग है ...
क्यूँ हँसी भी खफा खफा सी खड़ी है ...
सुना है आज रंगपंचमी है ...
क्यूँ नहीं कुछ मीठा कुछ तीखा यहाँ है ...
क्यूँ नहीं हल्ला और मस्ती भरी टोली यहाँ ...
क्यूँ हर शब्द में कड़वाहट भरी है ...
सुना है आज रंगपंचमी है ...
कहीं धूप बाती कहीं लो जली है ...
कहीं पागल्पंती कही मस्ती की झड़ी है ...
कहीं पागल्पंती कही मस्ती की झड़ी है ...
क्यूँ यहाँ पर सिर्फ जलती राख पड़ी है ...
सुना है आज रंग पंचमी है ...
सुना है आज रंग्पच्मी है ...
मेरी ज़िन्दगी में क्यों रंगों की कमीं है ...