Saturday 28 April 2012

"अंतर्द्वंद"

मैं टूट कर बिखर गया..
पर किसी को पता ना चला...



कुछ कागज़ के पत्तों के नाम पर ,
प्यार मेरा परवान चढ़ गया,
किसी को पता ना चला...

वो आने वाले कल में घुलती रही,
मैं अपने बीते हुए कल में सिमट गया, 
किसी को पता ना चला...

जी रहा हु अब कैसे,
या मैं राख हो गया, 
किसी को पता ना चला...


सुबह दुनिया की हुई,
मैं शाम हो गया, 
किसी को पता ना चला...

दुनिया मानो समंदर हो गयी,
और एक जहाज़ इसमें डूब गया,
किसी को पता ना चला...


मैं अँधेरे का शेह्ज़दा, 
अंधेरों से खुद ही डरने लगा, 
किसी को पता ना चला...

कब मैं झूठे व्यक्तित्व का पुलिंदा बना,
कब मेरे चेहरे पे उदासी का साया चढ़ गया,
किसी को पता ना चला...

दिल और प्यार तो था बेशुमार,
फिर भी मैं राजा से  रंक बन गया, 
किसी को पता ना चला...

सोचना समझना बस में नहीं था मेरे, 
कब मैं आशिक से दीवाना बन गया,
किसी को पता ना चला...

उनको लगा अलग हो गए हम,
अब ये सदा का संग हो गया,
किसी को पता ना चला...

कछुए की चाल से चल रही ये ज़िन्दगी,
वो रेंगता सा काँटा भी कब रुक गया,
किसी को पता ना चला...


मेरे जीवन का मतलब अब सिर्फ आक्रोश है, 
आँखे नहीं अब नम मेरी अन्दर बस एक क्रोध है,
किसी को पता ना चला...

खुदा है भी या अब सिर्फ नाम ही है,
अब तोह यही एक "अंतर्द्वंद" है, 
किसी को पता ना चला... 

Tuesday 13 March 2012

Rangpanchami...



सुना  है  आज  रंग्पच्मी  है ...
मेरी  ज़िन्दगी  में  क्यों  रंगों  की  कमीं  है ...



क्यूँ  नहीं  कोई  ख़ुशी  कोई  उमंग  है ...
क्यूँ  नहीं  कहीं  पिचकारी  कहीं  पे  भंग  है ...
क्यूँ  हँसी  भी  खफा  खफा  सी  खड़ी  है ...
सुना  है  आज  रंगपंचमी है ...

क्यूँ  नहीं  कुछ  मीठा  कुछ  तीखा  यहाँ  है ...
क्यूँ  नहीं  हल्ला  और  मस्ती  भरी  टोली  यहाँ ...
क्यूँ  हर  शब्द  में  कड़वाहट  भरी  है ...
सुना  है  आज  रंगपंचमी  है ...

कहीं  धूप  बाती  कहीं  लो  जली  है ...
कहीं  पागल्पंती  कही  मस्ती  की  झड़ी  है ...
क्यूँ  यहाँ  पर  सिर्फ  जलती  राख  पड़ी  है ...
सुना  है  आज  रंग  पंचमी  है ...



सुना  है  आज  रंग्पच्मी  है ...
     मेरी  ज़िन्दगी  में  क्यों  रंगों  की  कमीं  है ...


Tuesday 6 March 2012

टूटी नींद... टूटे सपने...




आज फिर आँख खुल गयी आधी रात में...
खिड़की  से  झाँक  रही थी  चांदनी ...
ना  जाने  किसकी  तलाश  में ...
शायद  वो  चाह  रही  थी  बीते  हुए  कल  पे  कुछ  रौशनी  लाना ...

नींद  आज  फिर  गुम  थी  आँखों  से ...
फिर  ख़्वाब  नहीं  थे  कही  भी ...
सब  टूटा  हुआ  नज़र  आ  रहा  है  आस  पास ...
कुछ  सूझ  नहीं  रहा  है  अब  मुझे ...

सोच  का  कभी  कोई  दायरा  नहीं  था ...
ना  ही  आज  कोई  दायरा  बना  पायी  मैं ...
फिर  परों  का  सहारा  लिए  उढ  चली  वो  जाने  कहाँ ...
शायद  वहां ... जहाँ  सोचा  न  था ...

बचपन  में  सब  कितना  अच्छा  लगता  था ...
पापा  का  प्यार  माँ  का  लाढ़ ...
दोस्तों  की  टोली , मंदिर  की  रोली ...
दुर्गा  का  खाना  और  शैतानी  की सवारी ...

मेले  में  जाना  झूले  झूल कर  आना ...
स्कूल  में  होमेवोर्क  नहीं  करके  ले  जाना ...
घर  पर  आकर  झूठ  बोलना  बहाने  बनाना ...
पापा  का  गुस्साना  और  फिर  भी  माँ  का  बचाना ...

बेहेन का  तोतली  सी  आवाज़  में  दीदी  बुलाना ...
उसको  अपनी  साइकिल  पे  घुमाना ...
विनय  नगर  की  गलियों  से  किले  तक  ले  जाना ...
शाम  को  मच्चार्तानी  में  कहानी  सुनाना ...

सोचा  ही  नहीं  की  कभी  वक़्त  भी  बदल  जायेगा ...
जिन्गदी  के  पन्नो  पे  स्कूल  की  जगह  कॉलेज  का  नाम  आएगा ...
कॉलेज  का  भी  अपना  ही  दौर  था ...
बड़ों  की  एक जगह  पर  बच्चो  का  शोर  था ...

सभी  लडकियां  सज  धज  कर आती  थी ...
पर  अपनी  टोली  तब  भी  बेतरतीबी  में  रंग  जमाती  थी ...
टीचर की  हर  बात  को  घुमा  कर  बोलना ...
और  फिर  हस्ते  हस्ते  सबके  सेन्स ऑफ़  ह्यूमर  को  तोलना ...

कौन  है  आजू  बाजू  कभी  सोचा  नहीं ...
घर  पे  ना  दिया  वक़्त  कभी ,चिल्ला  कर  कभी  कोई  रोका  नहीं ...
हमें  कभी  कोई  खबर  न  थी  मस्ती  में  हमारी ...
पर  धीरे  धीरे  बढ़  रही  थी  वक़्त  की  सवारी ...

धीरे  से  एम् बी ऐ   की  कोअचिंग  में  बंधा  समां ...
उफ़  ये  क्या  याद  कर  बैठी  मैं ...
ऎसी  कोई  अच्छी  भी  कहाँ  थी  ये  यादें ...
तीन  दोस्तों  का  मिलना  और  फिर ...

अच्छा  ही  था  मैं  अलग  हो  गयी  थी ...
आज  भी  कहाँ  छोड़ते  हैं  वो  काले  साए  मुझे ...
ज़िन्दगी  की  एक  कडवी  सच्चाई  जो  देखी  थी ...
दोस्त  की  शकल  में  एक  काली  परछाई  देखी  थी ...

आ  पहुची  मैं  पुणे ...
एम् बी ऐ के कॉलेज  में ,ज़िन्दगी  कितनी  बदल  गयी  है  यहाँ ..
अब  हमें  पढना  पड़ता  है ...
पर  कब  तक , ऑरकुट  भी  एक  सखा  अपना  है  यहाँ ...

जॉब  में  आके  ज़िन्दगी  मानो  बदल  सी  गयी ...
दोस्त  कुछ  बने  कुछ  फिर  मिली  काली  पर्चैयाँ ...
पर  कुछ  दोस्त  होते  हैं  अपने ...
साथ  नहीं  छोड़ते  चाहे  कितनी  भी  हो  रुस्वाइयाँ ...

दोस्त  मेरा  भी  कोई  बना ...
पता  नहीं  चला  कब  वक़्त  बदल  गया ...
सोच  बदल  रही  थी  समझ  बदल  रही  थी ...
दिशाए  बदल  रही  थी  वादे  बदल  रहे  थे ...

कैसे  हुआ  ये  समझ  नहीं  आ  रहा  मुझे ...
सही  हुआ  या  गलत  हुआ  नहीं  पता  मुझे ...
पर  आज  एक  ऐसे  दोराहे  पे  खड़ी  हु ...
ना जानू जिंदा  हु  या  जिंदा  लाश  सी  पड़ी  हु ...

सब  कुछ  बदला  सा  लग  रहा  है  अब  मुझे ...
क्या  हो  रहा  है  ये  ज़िन्दगी  को  और  कुछ  न  सूझे ...
क्या  बदल  गए  वो  रिश्ते  जिनके  साथ  लगता  था  कभी ...
कुछ  भी  हो  नहीं  बदलेंगे  ये  चाहे  साथ  छोड़े सभी ...

माँ  पापा  के  उस  प्यार  को  मैं  झुठला  नहीं  सकती ...
पर  मैं  भी  बड़ी  हो  गयी  हु  क्यों  ये  मैं  बतला  नहीं  सकती ...
चाहे  बहुत  कुछ  यहाँ  बुरा  हो  रहा  है ...
पर  फिर  भी  दुनिया  में  कुछ  नया  हो  रहा  है ...


आज  क्या  करू  मैं  कुछ  समझ  नहीं  पा  रही  हु ...
ख़ुशी  कहाँ  गयी  ज़िन्दगी  से , सिर्फ  गुम  में  गोते  खा  रही  हूँ  ...
मेरे  कारण  ना  जाने  कितनी  जिंदगियां  बन  बिगड़  जायेंगी ...
येही  सोच  कर   मैं  जड्ड हुई  जा  रही  हूँ  ...

ऐसा  नहीं  था की  नहीं  सोचा  था  मैंने  कभी  इसके  बारे  में ...
पर  अंत इतना  दर्द भरा होगा  जाना  नहीं  था  मैंने ...
मेरे  कारण  कितनो  की  नींद  है  बाकी  हिसाब  लगा  रही  हूँ ...
क्यों  कभी  ये  सपने  ही  बुने  थे  सोचे  जा  रही  हूँ  ...


इन  आंसुओ  का  मोल  कैसे  बता  पाऊँगी  मैं ...
जो  हर  किसी  को  दिए  जा  रही  हूँ   मैं ...
पापा  की  उस  आवाज़  का  और  माँ  ki सिसकियों  का  हिसाब  किसे  दे  पाऊँगी  मैं ...
तुम्हारी  तो  कोई  गलती  भी  नहीं  थी , बस एक  गलत  लड़की  से  दिल  लगा  बैठे ...

ये  कराहने  की  आवाज़  कैसी  ओह्ह !!  माँ  आज  भी  नहीं  सोई ...
यहाँ  मैं  नहीं  सोई  वहां  पापा  और  तुम  भी  नहीं  सोये  होगे ...
और  ये  चांदनी  अभी  भी  आ  रही  है  खिड़की  से  अन्दर ...
ना  जाने  और  कितना  सोचना  बाकी  है  की  ख़तम  ही  नहीं  होता ................

Tuesday 10 January 2012

Maa I Love You.... :(


Roz savere uthkar jab, tere chahre ki vo mayoosiyan dekhti hu...
Khud se main bas ek hi savaal karti hu...
ki jaane main kya karti hu.... Na jaane main kya karti hu...

Teri koi galati na thi, fir bhi na tujhko khushi mili...
Roz ek nayi jung, patthar ki nayi laqeer mili...

                                              Chahti hu tujhe khushi dena.. par ghum hi deti jaati hu...
Khud se main bas ek hi savaal karti hu...
ki jaane main kya karti hu.... Na jaane main kya karti hu...


Tune bhi hai khawaab sajaye tere bhi kuch sapne hain...
teri bhi aashaye hain, kuch pal tere bhi apne hain...

Chahti hu tere sapne poore karna.. par todti main jaati hu...
Khud se main bas ek hi savaal karti hu...
ki jaane main kya karti hu.... Na jaane main kya karti hu...


zimmedari tu sab leti hai, kabhi nahi kuch kehti hai...
Zindagi k surkh thapede tu bas yuhi sehti rehti hai...

chahti hu main kuch dard hatanaa..par aur dard de jaati hu
Khud se main bas ek hi savaal karti hu...
ki jaane main kya karti hu.... Na jaane main kya karti hu...


Un foolti saanso me bhi, tu sab kuch karti jaati hai...
Koi kaam adhoora nahi rahe, sabki takleef mitaati hai...

Ab aur naa tarse tu..karna kuch aisa chahti hu...
Khud se main bas ek hi savaal karti hu...
ki jaane main kya karti hu.... Na jaane main kya karti hu...


Tujhko bhi haq hai hasne ka,Duniya ki khushi ko chakhne ka...
Manzil apni to ek hi hai..khushi ki talaash me main bhi hu...
 




Diye banke tu roshan hai.. baati ban main jalna chahti hu...
Khud se main bas ek hi savaal karti hu...
ki jaane main kya karti hu.... Na jaane main kya karti hu...


Mujhpe tu kar bharosa, main teri har aah pe marti hu...
Sapne tere poore hongey bas ek hi waada karti hu...

Roz savere uthkar jab, tere chahre ki vo mayoosiyan dekhti hu...
Khud se main bas ek hi savaal karti hu...
ki jaane main kya karti hu.... Na jaane main kya karti hu...